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महाशिवरात्रि का पर्व कब है? क्यों मनाया जाता है? कैसे करे पूजा? और कथाएँ

महाशिवरात्रि का पर्व कब है? क्यों मनाया जाता है? कैसे करे पूजा? और कथा। Mahashivratri Kyu Manaya Jata hai? pooja, vrat and story ki jankari in Hindi.

महाशिवरात्रि का पर्व क्यों मनाया जाता है? | Why Mahashivratri is celebrated in Hindi?

पुराण, ग्रंथो, साधु, संतो और पौराणिक कथाओं के अनुसार के अनुसार भगवान शिव के जन्मदिवस को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिवलिंग रूप में प्रकट हुए थे। इस दिन पहली बार शिवलिंग की पूजा भगवान विष्णु और ब्रह्माजी द्वारा की गयी थी। यही कारण है की इस दिन शिवलिंग की पूजा की जाती है। कहते हैं कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था।

कई स्थानों पर यह भी माना जाता है कि इसी दिन भगवान शिव का पार्वती जी के साथ विवाह हुआ था। शिव और पार्वती के विवाह की कथा बढ़ी ही दिव्य है। जो इस कथा को कहता, सुनता और पढता है उसके जीवन में सुख ही सुख आ जाता है। आध्यात्मिक रूप से इसे प्रकृति और पुरुष के मिलन की रात्रि के रूप में बताया गया है।

mahashivratri vrat pooja vidhi jagran ki jankari

Mahashivratri 2022 mein kab hai? | 2022 में महाशिवरात्रि किस दिन है? | Date of Mahashivratri in 2022

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि (Chaturdashi Tithi) के दिन 1 मार्च, 2022 को महाशिवरात्रि मनाया जाएगा और ज्योतिष शास्त्र अनुसार 1 मार्च की सुबह 3:16 मिनट से शुरू होकर 2 मार्च को सुबह 10 तक रहेगी।

What is Science behind Mahashivaratri? | महाशिवरात्रि का पीछे वैज्ञानिक कारण क्या है?

महाशिवरात्रि वसंत ऋतु में आती है और वसन्त ऋतु में तापमान में नमी आ जाती है और सभी जगह हरे-भरे पेड़ों और फूलों के कारण चारों तरफ हरियाली और रंगीन दिखाई देता है। इस ऋतु में पृथ्वी पर प्रकृति में ऊर्जा ऊपर उठती है। इस समय हमारे ऋषिमुनियोने अध्यात्म में प्रगति पाने में सहायक लगी। इस समय महाशिवरात्रि के दिन लोग जागरण करके अपने शरीर को जागृत रखकर अपने मैं अंदर रही ऊर्जा को ऊपर उठाते है।

महाशिवरात्रि और शिवरात्रि व्रत पूजा विधि? | Mahashivratri or Shivratri How to do vrat pooja vidhi?

शिवरात्रि की पूजा विधि के विषय में भी अलग-अलग मत हैं क्योंकि शिव पुराण के अनुसार शिव की पूजा में विधि का महत्व नहीं है, केवल उनका नाम जपने भर से ही खुश हो जाते हैं क्योंकि भोलेनाथ वाकई बड़े ही भोले हैं।

Mahashivratri 4 pahar puja

सनातन धर्म के अनुसार शिवलिंग स्नान के लिये रात्रि के प्रथम प्रहर में दूध, दूसरे में दही, तीसरे में घृत और चौथे प्रहर में मधु, यानी शहद से स्नान करना चाहिए। चारों प्रहर में शिवलिंग स्नान के लिये मंत्र भी हैं। शिवरात्रि की रात को पूजा 4 पहर में की जाती है।
  • पहले पहर की पूजा शाम 6:21 मिनट से रात्रि 9:27 मिनट के बीच की जाएगी।
  • दूसरे पहर की पूजा रात 9:27 मिनट से 12: 33 मिनट के बीच,
  • तीसरे पहर की पूजा रात 12:33 मिनट से सुबह 3:39 बजे के बीच और...
  • चौथे पहर की पूजा 3:39 मिनट से 6:45 मिनट के बीच की जाएगी।
  • महाशिवरात्रि के दिन सुबह 11.47 से दोपहर 12.34 तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा। इसके बाद दोपहर 02.07 से लेकर 02.53 तक विजय मुहूर्त रहेगा। पूजा या कोई शुभ कार्य करने के लिए ये दोनों ही मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ हैं। शाम के वक्त 05.48 से 06.12 तक गोधूलि मुहूर्त रहने वाला है।

    शिवपुराण कथा में छः वस्तुओं का महत्व:-

  • बेलपत्र से शिवलिंग पर पानी छिड़कने का अर्थ है कि महादेव की क्रोध की ज्वाला को शान्त करने के लिए उन्हें ठंडे जल से स्नान कराया जाता है।
  • शिवलिंग पर चन्दन का टीका लगाना शुभ जाग्रत करने का प्रतीक है।
  • फल, फूल चढ़ाना इसका अर्थ है भगवान का धन्यवाद करना।
  • धूप जलाना, इसका अर्थ है सारे कष्ट और दुःख दूर रहे।
  • दिया जलाना इसका अर्थ है कि भगवान अज्ञानता के अंधेरे को मिटा कर हमें शिक्षा की रौशनी प्रदान करें जिससे हम अपने जीवन में उन्नति कर सकें।
  • पान का पत्ता, इसका अर्थ है कि आपने हमें जो दिया जितना दिया हम उसमें संतुष्ट है और आपके आभारी हैं।
  • महाशिवरात्रि और मासिक शिवरात्रि व्रत विधि:-

    भगवान सिव को समर्पित मासिक शिवरात्रि व्रत की पूरी पूजा विधि नीचे मुजब हैं।

  • सबसे पहले जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए।
  • सुबह सवेरे उठें, स्नान करें और स्वच्छ कपड़े धारण करें।
  • घर के मंदिर को साफ करने के बाद गंगाजल से पवित्र करें।
  • भगवान शिव की प्रतिमा के सामने दीपक जलाएं और मासिक शिवरात्रि व्रत का संकल्प लें।
  • भगवान शिव और माता पार्वती दोनों की पूजा करें, ध्यान लगाएं, कथा सुनें।
  • हो सके तो एक माला ऊं नमः शिवाय का जाप करें।
  • भगवान भोलेनाथ पर प्रसाद का भोग लगाएं।
  • भगवान शिव की आरती करें।
  • दिन भर जब भी संभव हो प्रभु को याद करें, उन्ही की भक्ति में ध्यान लगाएं।
  • निराहार रहकर किया जाता है व्रत।
  • मासिक शिवरात्रि के व्रत में अन्न ग्रहण नहीं होता। शाम को फलाहान जरूर किया जा सकता है। लेकिन इस व्रत का पारण अगले दिन किया जाता है

    महाशिवरात्रि की कथा। Story behind Mahashivratri

    एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, 'ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है? जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?' उत्तर में शिवजी ने पार्वती को 'शिवरात्रि' के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई-

    शिकारी की महाशिवरात्रि की कथा

    एक बार चित्रभानु नामक एक शिकारी था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।

    शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो विल्वपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।

    पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुंची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, 'मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।' शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई।

    कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे पारधी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।' शिकारी ने उसे भी जाने दिया।

    दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, 'हे पारधी!' मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे शिकारी हंसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे। उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूं। हे पारधी! मेरा विश्वास कर, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।

    मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में बेल-वृक्षपर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृगविनीत स्वर में बोला, 'हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।'

    मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।' उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था।

    उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गया। भगवान शिव की अनुकंपा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा। थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आंसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया। देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे। घटना की परिणति होते ही देवी देवताओं ने पुष्प वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए।

    इस व्रत के प्रभाव से उसके पाप भस्म हो गए और पुण्य उदय होते ही उसने हिरनों को मारने का विचार छोड़ दिया। तभी शिवलिंग से भगवान शंकर प्रकट हुए और उन्होंने शिकारी को वरदान दिया कि त्रेतायुग में भगवान राम तुम्हारे घर आएंगे और तुम्हारे साथ मित्रता करेंगे। तुम्हें मोक्ष भी मिलेगा। इस प्रकार अनजाने में किए गए शिवरात्रि व्रत से भगवान शंकर ने शिकारी को मोक्ष प्रदान कर दिया।

    समुद्र मंथन की महाशिवरात्रि की कथा

    समुद्र मंथन अमर अमृत का उत्पादन करने के लिए निश्चित थी, लेकिन इसके साथ ही हलाहल नामक विष भी पैदा हुआ था। हलाहल विष में ब्रह्मांड को नष्ट करने की क्षमता थी और इसलिए केवल भगवान शिव इसे नष्ट कर सकते थे। भगवान शिव ने हलाहल नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था। जहर इतना शक्तिशाली था कि भगवान शिव बहुत दर्द से पीड़ित थे और उनका गला बहुत नीला हो गया था। इस कारण से भगवान शिव 'नीलकंठ' के नाम से प्रसिद्ध हैं। उपचार के लिए, चिकित्सकों ने देवताओं को भगवान शिव को रात भर जागते रहने की सलाह दी। इस प्रकार, भगवान भगवान शिव के चिंतन में एक सतर्कता रखी। शिव का आनंद लेने और जागने के लिए, देवताओं ने अलग-अलग नृत्य और संगीत बजाने लगे। जैसे सुबह हुई, उनकी भक्ति से प्रसन्न भगवान शिव ने उन सभी को आशीर्वाद दिया। शिवरात्रि इस घटना का उत्सव है, जिससे शिव ने दुनिया को बचाया। तब से इस दिन, भक्त उपवास करते है

    अन्य पौराणिक महाशिवरात्रि की कथा

    पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए। उनके क्रोध की ज्वाला से समस्त संसार जलकर भस्म होने वाला था किन्तु माता पार्वती ने महादेव का क्रोध शांत कर उन्हें प्रसन्न किया इसलिए हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भोलेनाथ ही उपासना की जाती है और इस दिन को मासिक शिवरात्रि कहा जाता है।

    अन्य भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन मध्य रात्रि में भगवान शिव लिङ्ग के रूप में प्रकट हुए थे। पहली बार शिव लिङ्ग की पूजा भगवान विष्णु और ब्रह्माजी द्वारा की गयी थी। इसीलिए महा शिवरात्रि को भगवान शिव के जन्मदिन के रूप में जाना जाता है और श्रद्धालु लोग शिवरात्रि के दिन शिव लिङ्ग की पूजा करते हैं।

    माना जाता है कि महाशिवरात्रि के बाद अगर प्रत्येक माह शिवरात्रि पर भी मोक्ष प्राप्ति के चार संकल्पों भगवान शिव की पूजा, रुद्रमंत्र का जप, शिवमंदिर में उपवास तथा काशी में देहत्याग का नियम से पालन किया जाए तो मोक्ष अवश्य ही प्राप्त होता है। इस पावन अवसर पर शिवलिंग की विधि पूर्वक पूजा और अभिषेक करने से मनवांछित फल प्राप्त होता है।

    शिवरात्रि पर रात्रि जागरण और पूजन का महत्त्व | Mahashivratri Jagran and significance

    माना जाता है कि आध्यात्मिक साधना के लिए उपवास करना अति आवश्यक है। इस दिन रात्रि को जागरण कर शिवपुराण का पाठ सुनना हर एक उपवास रखने वाले का धर्म माना गया है। इस अवसर पर रात्रि जागरण करने वाले भक्तों को शिव नाम, पंचाक्षर मंत्र अथवा शिव स्रोत का आश्रय लेकर अपने जागरण को सफल करना चाहिए।

    उपवास के साथ रात्रि जागरण के महत्व पर संतों का कहना है कि पांचों इंद्रियों द्वारा आत्मा पर जो विकार छा गया है उसके प्रति जाग्रत हो जाना ही जागरण है। यही नहीं रात्रि प्रिय महादेव से भेंट करने का सबसे उपयुक्त समय भी यही होता है। इसी कारण भक्त उपवास के साथ रात्रि में जागकर भोलेनाथ की पूजा करते है।

    शास्त्रों में शिवरात्रि के पूजन को बहुत ही महत्वपूर्ण बताया गया है। कहते हैं महाशिवरात्रि के बाद शिव जी को प्रसन्न करने के लिए हर मासिक शिवरात्रि पर विधिपूर्वक व्रत और पूजा करनी चाहिए। माना जाता है कि इस दिन महादेव की आराधना करने से मनुष्य के जीवन से सभी कष्ट दूर होते हैं। साथ ही उसे आर्थिक परेशनियों से भी छुटकारा मिलता है। अगर आप पुराने कर्ज़ों से परेशान हैं तो इस दिन भोलेनाथ की उपासना कर आप अपनी समस्या से निजात पा सकते हैं। इसके अलावा भोलेनाथ की कृपा से कोई भी कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण हो जाता है।

    शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में क्या अंतर है? | Difference between Shivratri and Mahashivratri

    हर माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है, और महाशिवरात्रि फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन वर्ष में एक बार मनाते है।

    महाशिवरात्रि का क्या अर्थ होता है? | What is the Meaning of Mahashivratri?

    शिव का अर्थ होता है कल्याण। जो कल्याणकारी हैं वही शिव है और शिवरात्रि का अर्थ होता हैं, भगवान शिव की याद में जो रात गुजर जाये वो शिवरात्रि बन जाती है।

    महाशिवरात्रि के दिन उपवास क्यों किया जाता है? | Mahashivratri fast (Vart) reason?

    स्कंद पुराण के अनुसार शिवरात्रि का व्रत, पूजन, जागरण और उपवास करनेवाले मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता है। शिवरात्रि के समान पाप और भय मिटानेवाला दूसरा व्रत नहीं है। इसको करनेमात्र से सब पापों का क्षय हो जाता है।

    मानव के जीवन का अंतिम लक्ष्य ईश्वर को प्राप्त करना है। इसके लिए तीन मार्ग हैं,
    1. ज्ञान मार्ग
    2. ईश्वर की भक्ति
    3. कर्म मार्ग
    का है। महाशिवरात्रि का पर्व शिव भक्ति के मार्ग द्वारा मोक्ष को प्राप्त कर शकते है।